शनिवार, 27 मई 2017

एकता का दो दिवसीय नाट्य उत्सव
उलझन भी फरियाद भी इलाहाबाद की जानी-मानी नाट्यसंस्था एकता ने अपने दो दिवसीय नाट्य उत्सव में नवोदित रंग निदेशिका दीपा मित्रा के निर्देशन में दो नाटक उलझन और फरियाद की प्रस्तुति की । उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के बीमार व्यवसायिक प्रेक्षागृह मे प्रस्तुत किए गए दोनों नाटक बाल रंगमंच को समर्पित संस्था एकता का पहली बार बड़े फलक पर किया गया प्रयोग था । संस्कृति मंत्रालय के आर्थिक सहयोग के चलते दीपा मित्रा के लिखे और निर्देशित दोनों नाटकों की प्रस्तुति की जिम्मेदारी एकता संस्था पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नईदिल्ली द्वारा सौंपी गई । दोनों प्रस्तुतियों की सराहना भी हुई और दबी जबान में आलोचना भी । दोनों प्रस्तुतियां इसलिए भी महत्वपूर्ण रही कि इन्हें देखकर दर्शकों को साफ-साफ पता चला कि नाटक में क्या होना चाहिए और क्या नही । यह भी मालूम हुआ कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय किस तरह की प्रस्तुतियां पसंद करता है और कैसे निर्देशकों का काम उसे अच्छा लगता है। एकता ने इस नाट्य उत्सव के दौरान किसी उत्सव से जुड़ी सभी औपचारिकताएं बखूबी पूरी की । इस मंच पर शहर के जाने माने रंगकर्मियों को सभी औपचारिकताओं के साथ सम्मानित किया गया । 2 दिनों में मिलाकर लगभग 350 दर्शकों ने इन दोनों नाटकों को देखा । जाने-माने रंगकर्मियों ने भी पूरी समय उपस्थित रहकर नाट्यकर्म का सम्मान किया । इलाहाबाद का रंग जगत नाटकों की समीक्षा को लेकर बहुत संवेदनशील है इसलिए नाटक अच्छे हो , या बुरे , लोग सभी नाटकों की आलोचना करने से कतराते हैं और आपसी रिश्ते को ज्यादा महत्व देते हैं । नाटक का उत्थान पतन तो अपनी स्वाभाविक गति से होता रहेगा लेकिन संबंधों के खराब हो जाने का खतरा कोई नहीं उठाना चाहता । इलाहाबाद के वरिष्ठ रंगकर्मी प्रवीण शेखर ने एक बार कहा था कि सभी नाटकों की समीक्षा नहीं की जाती । यह देखना भी जरुरी होता है कि वह नाटक जिसकी समीक्षा की जा रही है वह समीक्षा डिज़र्वभी करती है या नही ।  मेरा मानना है कि कुछ नाटक नाटक की मुख्यधारा मैं नहीं होते लेकिन सभी रंगकर्मी कभी न कभी कमजोर नाटकों के बीच से गुजर कर मुख्यधारा में शामिल होते है । कमजोर नाटक भी कल होने वाले अच्छे नाटक की तैयारी का हिस्सा होते हैं इसलिए इनका महत्व कम नहीं है । एकता को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं एक नए बड़े फलक पर काम शुरू करने के लिए लेकिन दुखद सूचना यह है कि संस्कृति मंत्रालय से जुड़ने के बाद एकता ने सबसे पहले इस वर्ष अपना प्रतिष्ठित वार्षिक उत्सव कलियां जो खिलकर महके की उस प्रस्तुति को करना स्थगित कर दिया है जिसका इंतजार इस शहर के 300 से अधिक बाल कलाकार पूरे वर्ष करते हैं । वहीं इस उत्सव से बहुत सारे नवोदित कलाकार विभिन्न कलाओं की साधना की ओर अग्रसर होते हैं । इलाहाबाद के बच्चों के लिए यह एक बड़ा धक्का है । एकता को किसी भी दशा में अपने इस आयोजन को स्थगित नहीं करना चाहिए क्योंकि यही वह उत्सव है जो एकता को अपने पैरों पर खड़ा किए हुए है । इन्हीं बच्चों के दम पर एकता कभी किसी आर्थिक सहयोग के मोहताज नहीं रही ।
उलझन और फरियाद नाटकों के सभी कलाकारों को बहुत-बहुत बधाई । उन्होंने अपनी ओर कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । संभावनाएं सभी जगह शेष होती हैं तो मार्ग दर्शक ने यहाँ भी संभावनाओं को छोड़ दिया है संभावना है कि अगली प्रस्तुतियों में वह इसे मुकम्मल कर लेंगें ।
जिस संस्था के पास भाई जमील अहमद और मनोज गुप्ता जैसे समर्पित लोग हो , उस संस्था से लोग अगर उम्मीद करते हैं तो यह स्वाभाविक है । ऑल इंडिया न्यू थिएटर एकता की इस नई उड़ान का स्वागत करता है शुभकामनाएं देता है क़ि एकता आने वाले दिनों में देश की एक मानक संस्था बने ।
- अजामिल


सभी चित्रों के छायाकार विकास चौहान








































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