शनिवार, 27 मई 2017

जनसंस्कृति दिवस पर
समानांतर नहीं दिखाई
लीला नंदलाल की
इलाहाबाद की जानी-मानी नाट्यसंस्था समानांतर ने जन संस्कृत दिवस पर सुप्रसिद्ध कथाकार उपन्यासकार भीष्म साहनी की कहानी पर आधारित नाटक लीला नंदलाल की की सभी को मन मोह लेने वाली प्रस्तुति की । इस एकल प्रस्तुति में नवोदित अभिनेता धीरज गुप्ता ने पूरी उर्जा के साथ एक मंजे हुए कलाकार की तरह कथा के मुख्य पात्र के अलावा न जाने कितने पात्रों को जीवंत कर दिया और दर्शकों को अंत तक बांधे रखा । धीरज गुप्ता ने संवादों की अदायगी में बहुत से कलाकारों को कुछ इस तरह जिया जैसे नाटक के सभी पात्र उसी को लेकर बने हो । धीरज ने साबित कर दिया कि एक अभिनेता के रूप में उसमें काफी सामर्थ्य है और वह काफी कुछ कर सकता है ।
वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक के निर्देशन में प्रस्तुत किए गए इस नाटक में भौमिक दादा ने जिंदगी की विसंगतियों और विकृतियों को बखूबी अपने अभिनेता के जरिए उजागर करने में सफलता पाई । लीला नंदलाल की एक व्यंग नाटक है जो बड़ी सच्चाई के साथ आज की व्यवस्था में हमारे सपनों को चूर-चूर होता हुआ दिखाता है और यह भी बताता है कि इंसान किस तरह इस भ्रष्ट व्यवस्था मैं असमर्थ हो चुका है ।
इस नाटक की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि यह बहुत थोड़े से संसाधनों के बीच पूरी ताकत के साथ खेला गया और इसके संदेश को जहां चोट करनी थी यह संदेश कहां तक पहुंचा । समानांतर ने यह भी साबित कर दिया इस नाटक के जरिए कि कोई जरुरी नहीं है कि बड़े तामझाम के बीच ही नाटकों की प्रस्तुति की जाए और लाखों रुपए खर्च करके केवल एक शो करके पैसे की बर्बादी की जाए । अनिल रंजन भौमिक अनुदानजीवी रंगकर्मी नहीं है । नाटक के दर्शक ही कमोबेश उनके रंगमंच को जीवित रखे हुए हैं और यही दर्शक अनिल रंजन भौमिक के रंगकर्म के आधार हैं । नाटकों के लिए अनिल रंजन भौमिक किसी बड़े अनुदान का इंतजार नहीं करते बल्कि छोटी सी सीमाओं में पूरी सूझ-बूझ और लगन के साथ नाटकों की प्रस्तुतियां करना उनकी अपनी नाट्य शैली का हिस्सा है जो बहुत से लोगों को प्रेरित करता है । कथ्य से लेकर प्रस्तुति तक अनिल रंजन भौमिक का रंगमंच कुछ नए की तलाश करता चलता है शायद यही वजह थी कि लीला नंदलाल की नाटक में केवल एक अभिनेता को लेकर उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग किया । इलाहाबाद के स्वराज्य विद्यापीठ के छोटे से सभागारनुमा जगह पर यह प्रस्तुति की गई जिसे लगभग 100 लोगों ने देखा और सराहा । इस प्रस्तुति ने यह बात भी साफ कर दी क़ि रंगकर्म की गति को बनाए रखने के लिए लगातार अच्छे रंगकर्म को करने की आवश्यकता है न क़ि सुविधाओं को जुटाने का बहाना लेकर समय बर्बाद करने की । अनिल रंजन भौमिक जमीन से जुड़े रंगकर्मी है इसलिए इन्हें अपने चारों तरफ मंच दिखाई देता है, जहां से खड़े होकर वह अपनी बात कह सकते हैं । अनिल रंजन भौमिक की नजर में बात बड़ी चीज है , बाकी तो बात को संप्रेषित करने का साधन मात्र है और कला इसी में है कि बात हर हाल में कहीं जाए ।
ऑल इंडिया न्यू थिएटर समानांतर के सभी सदस्यों और वरिष्ठ रंग निर्देशक अनिल रंजन भौमिक को इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता है और उम्मीद करता है कि संस्था ऐसी ही सार्थक प्रस्तुतियां करती रहेगी । धीरज गुप्ता को बहुत बहुत बधाई । बड़ी संभावना है इस अभिनेता के भीतर । विनम्रता इस अभिनेता का आभूषण बने और यह मेहनत से काम करता हुआ बहुत आगे तक जाए , हम यही कामना करते है ।
समीक्षक अजामिल
सभी चित्रों के छायाकार विकास चौहान










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