रविवार, 30 अप्रैल 2017

इडिपस- नाटक की कुछ तस्वीरें

इलाहाबाद में ग्रीक नाटक ईडिपस की शानदार प्रस्तुति ****
केवल इलाहाबाद में ही मैंने ग्रीक नाटक ईडिपस की अलग-अलग निर्देशकों द्वारा निर्देशित लगभग सात प्रस्तुतिया देखी हैं । इन प्रस्तुतियों में नई बुनावट का अभाव तो था ही , ये एक दूसरे से भी बहुत प्रभावित रही । कमोबेश परिवर्तन के साथ इन्हें पेश किया गया जबकि अच्छे नाटकों में समयानुकूल निर्देशक परिवर्तन करते रहते हैं , नई तकनीक को शामिल करते हैं , संगीत बदला जाता है लेकिन यह सब तो तब होता है जब समर्थ निर्देशक नाटक को नए ढंग से डिजाइन करने में सक्षम हो ।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय , नई दिल्ली से प्रशिक्षित वरिष्ठ रंगकर्मी डॉक्टर विधु खरे ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की इलाहाबाद शाखा मैं प्रशिक्षित फिल्म एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स के छात्रों को लेकर उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के बीमार प्रेक्षागृह मैं ग्रीक नाटक ईडिपस की प्रस्तुति बिल्कुल नई डिजाइन के साथ की । इस प्रस्तुति का संगीत काफी रिच था और ईडिपस के समय को काफी उत्तेजना और हंगामे के साथ रेखांकित करता था । नाटक के संगीत ने समयानुकूल वातावरण का निर्माण मंच पर सफलतापूर्वक किया । संगीत की मात्रा काफी सघन थी बावजूद इसके किसी ने भी संवादों के ठीक से सुनाई न देने की शिकायत नहीं की और संवाद जितने सुनाई दिए उतने से ही नाटक को देखने का आनंद उठा लिया ।
नाटक के अनुवाद की भाषा उर्दू थी । नाटक के पात्रो की जुबान पर यह भाषा पूर्वाभ्यास की कमी के कारण रवाँ नहीं हो पाई थी बावजूद इसके कलाकारों ने वातावरण को सजीव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । मुश्किल यह है कि उर्दू दिमाग से नहीं बोली जाती , दिल से बोली जाती है , इसलिए भी संवादों की अदायगी और ज्यादा मेहनत की मांग कर रही थी । हां विधु खरे ने नाटक को डिजाइन बहुत अच्छा किया था । एक मौलिक परिकल्पना आरंभ से अंत तक नाटक मैं तैरती हुई दिखाई दे रही थी और दर्शकों को बांधे हुए थी । एकदम प्रोफेशनल काम किया था विधु खरे ने । प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित निर्देशकों के काम में कहां और क्या अंतर होता है , यह इस प्रस्तुति में साफ दिखाई पड़ रहा था ।
सुजॉय घोषाल का प्रकाश संचालन हमेशा की तरह लुभा लेने वाला था । सुजोय घोषाल अपने प्रकाश संचालन में प्रकाश की भाषा और आवश्यकता से अधिक ध्यान दृश्य की सुंदरता की ओर आकर्षित करते हैं । गीमिक्स का खेल उन्हें बहुत पसंद है । LED लाइट्स ने उनके काम को आसान और सीमित कर दिया है । लाल और नीली रोशनी उन्हें बहुत प्रिय है और उनका सारा जादू इन्ही दो रोशनी के इर्द गिर्द रहस्य पैदा करता है । सुजॉय घोषाल एक प्रयोगधर्मी रंगकर्मी हैं । लोग उनसे बहुत उम्मीद करते हैं । विधु खरे जैसी निर्देशिका के साथ उनके काम की खिलावट दोबारा हो जाती है ।
अंत में इतना ही कहना होगा क़ि यह प्रस्तुति बहुत दिनों तक लोगों के दिल और दिमाग पर छाई रहेगी । डॉक्टर विधु खरे को अगर अवसर मिलता रहे तो निश्चय ही रंगकर्मियों को उनके हर हस्तक्षेप पर गर्व होगा । उनके भीतर एक समर्थ निर्देशक मौजूद है जिसे बस अवसर की तलाश है ।
ऑल इंडिया न्यू थिएटर इस प्रस्तुति के लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई और सभी कलाकारों को उनके भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाए देता है ।
समीक्षक / अजामिल
** सभी चित्र वरिष्ठ छायाकार विकास चौहान के सौजन्य से































































































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