शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

मेरी कविताए

पूस की ठंडी रातो में
में अपने एसी कमरे में
जाड़े की ठंडी रातो में ,
नर्म मुलायम कम्बल में,
गर्म बिस्तर के साये में
जब सोता हू तो याद है आता
सड़को पर सोने वालो की
सर्द हवा का झोका आता
ठंडक का अहसास करता
सिरह सी जाती रूह है अपनी
जब आती है उन बेचारो की याद
कितनी मुश्किल कितनी कठोर
उन बेचारो की मुश्किल रात.




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